पंचतत्व और सत्य
पंचतत्व और सत्य
मास्टर ने पूछा कोई बच्चा यह बताएं,
कोई ऐसा सपना है जिसके लिए वह मर जाए।
नन्हे छोटू ने सोचा मैं क्यों मर जाऊं,
बड़ी मुद्दत के बाद इंसान बना हूं थोड़ा तो जी जाऊं।
पर्दे पर का यह मंजर बदलता गया,
धीरे धीरे छोटू के सामने जीवन की परतें उकेरता गया।
विचारों के खजाने में छोटू ऐसा खो जाए,
मृत चीजों से भी वह ऐसे सपने ढूंढ़ही लाए।
वायु जिसके बिना सब की सांसें थम जाए,
अपना रूप देखने के ख्वाहिश में मर जाए।
अग्नि जो सब नष्ट करने को है कुख्यात
मरने को हो तैयार अगर वह बतला पाए न्योछावर क्या कहलाता है।
जल जिसके बिना है सब कुछ उदास और सूखा,
मिट जाए अगर मिल जाए कोई हाथ पकड़ने का मौका।
रूह जिसकी अहमियत यह दिमागी जानवर ना समझ पाते,
खत्म हो जाए अगर सिखा सके उच्च जीवन जीने की बातें।
अचानक चल गया बवाल का झोंका ,
और मार दिया विचारों की इस दुनिया पर पोछा।
सबसे उच्च प्राणी मानव,
रुपयों- पैसों के लिए बन जाता है दानव।
हैवानियत के कारण बेटियां बाहर निकलते ही मछली सी मर जाती,
कुर्सी के शोर में कइयों की जान जाती।
नाम कमाने के लिए ईमान गिरा दिया जाता है,
कुछ ना हो पा रहा हो तो बस आरोप लगा दिया जाता है।
अल्लाह भगवान तो पहले ही बांट दिए थे,
पर अब तो मजहब रूपी औजार से कितने सर काट दिए जाते हैं।
रीति रिवाज, रिश्ते नाते तो पैरों में चुभने वाले वह कांटे है,
जो गीले और सूखे कचरे की तरह आसानी से फैंके जाते हैं।
अगर मैं उठ कर भी अमन, धर्म, प्रेम को देख पाऊं,
तो बेशक इस चमत्कारी और अतुलनीय सपने के लिए मर जाऊं।
