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घर की याद

घर की याद

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बहुत तड़पाती है वो

बिन बात आंखे भीगाती है वो

जीवन में अजीब सी बेचैनी लाती है वो

घर की याद।


चेहरे पर मुस्कुराहट तो है

लेकिन दिल असहज है

आगे तो बढ़ रही हूँ

लेकिन मंज़िल तू ही है

अपने सपनों को भूल जाने को

कहती है वो

घर की याद।


खाना यहां भी खाती हूँ

दोस्तों संग खूब हल्ला मचाती हूँ

लेकिन कुछ कमियाँ ढूंढने में

हर बार कामयाब हो जाती है वो

घर की याद।


कमरा यहां भी खुद का अपना है

वैसा ही सब कुछ बिखरा है

लेकिन फिर भी बार बार

घर की परछाईं दिखती है वो

घर की याद।


कुछ दिनों के बाद फिर मैं घर जाऊंगी

किसी कोने में बैठकर भी मुस्कुराउंगी

मां बाबा के बीच खुद को सुरक्षित पाऊंगी

लेकिन वापिस लौटने पर फिर डराएगी वो

घर की याद।


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