फूल की हँसी
फूल की हँसी
फूल तरह के कितने
बाग में वह अपने
फुलवारी की संगति से मैं
एक और फूल बना।।
बाग में इक फूलों की रानी
बाकी सब फूलों की प्यारी
बातें लगते हमसे करती सी
बार बार हँसती सी पड़ती
हँसते रहते उसकी
देखो पंखुडी की ओर
लाल पीले नीले रंग के
कितने रम्य वसन !!
हॅसते रहते उसकी
डालो दृष्टि वदन पर
निशान है इक पीड़ा का
झाँक रहा है उससे
अपने फूल-मन आता
ललना सी वह रुलाई
दिल फूल प्रकट न करता
अंदर रोता बाहर हॅसता
हेतु रानी की पीड़ा की
हेय से न सुनने की
रानी के मन सागर भीतर
क्लेश कथा थी काँटों की।।

