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फसल

फसल

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दूर तलक ,

लहलहाती हुई फसलों को

देखकर -भूमि पुत्रों का

मन --हर्षित हो उठा

ऐसा लग रहा था

मानो --धरा ढ़की हो

एक सुनहरी चादर से |

आया समय फसल कटने का

उत्सव सा --माहौल बना था

खेतों और खलिहानों में ,

क्या बच्चे --क्या बूढ़े

सभी मगन थे खेतों में |

कुछ कटकर --रख्खे थे

खलिहानों में --कुछ

बाकी ,थे कटने को --खेतों में

कुछ के दाने --निकल गये थे

कुछ बाकी थे --खलिहानों में |

परन्तु , यह क्या ..?

रात अचानक ---बिजली कौंधी

और - गरजे बादल

साथ में लाया , ओला ---पानी

बिन मौसम बरसात हुई |

हुआ सवेरा .......,

सारी फसलें गिरी पड़ी थी

और बिखरे थे , दाने

खलिहानों की सारी फसलें

डूब गई थी पानी में |

कोलाहल सा मचा हुआ था

सारी फसलें नष्ट हो गई

सारी मेहनत जाया हुई |



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