Ranjeeta Dhyani

Romance Tragedy

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Ranjeeta Dhyani

Romance Tragedy

फरेबी प्यार

फरेबी प्यार

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आ गया पिशाच मदारी के भेष में

डुगडुगी बजा कर घूम रहा परिवेश में


ढूंढ रहा शहर, गांव, बस्ती हर रेस में

त्राहि-त्राहि कर रही गुड़िया अपने देश में


कभी अपने प्यार का दुष्ट ने इज़हार किया

कभी हमसफ़र बनकर फरेबी ऐतबार किया


कभी गोरख-धंधों की आड़ में देह व्यापार किया

कभी अपने मुल्क में तो कभी सात समन्दर पार किया


प्रेमी युगल का प्रेम परवान पर चढ़ गया

छलिया अपने लक्ष्य में आगे बढ़ गया


कली की पंखुड़ी को मानो नया विस्तार मिला

भाग्य का धनी मान बैठी लगा सच्चा प्यार मिला


नए-नए उपहार नए कसमें-वादे नित होने लगे

आरम्भ से अब तक जैसे मधुर मीत होने लगे


ना रहा जाए एक पल भी बिना इस दीवाने के

सांसें थम भी जाएं मगर ज़माने में चर्चे हों परवाने के


भोली-भाली युवती को झांसा देकर घर से भगा लिया

लिव इन रिलेशन में रहने का मन उसने अब बना लिया


अपनों को ठुकरा दिया, वापस आने से मना किया

छोड़ कर आंगन अपना, प्रिय संग रहना स्वीकार किया


कुटिलता से आलिंगन कर कली को सबसे दूर किया

मैं ही हूं बस केवल तुम्हारा जहन में उसे फितूर दिया


नासमझ लड़की से पिशाच ने यूं मायावी लाड़ किया


हर दिन उसे निर्वस्त्र कर उसकी देह से खिलवाड़ किया

दूर किया मासूम कलियों को उनकी फुलवारी से


विश्वास जीत लिया दरिंदे ने बड़ी ही चालाकी से

बेजान हुई जो कली आज अपनी ही नादानी से


फितूर चकनाचूर हुआ नज़र हटी अनुरागी से

हाय! ये सब क्या हो गया? सिर थाम वो बैठ गई


भाव एकदम शून्य हो गए देह मानो ऐंठ गई.....

आसपास न था फरेबी, बन्द कमरे में खुद को पाया था

अपनी गलती का प्रायश्चित करने का मानो वक्त आया था।



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