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Prince Sharma

Romance

4.8  

Prince Sharma

Romance

पहली मुलाकात

पहली मुलाकात

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पहली ही मुलाकात में ये

दिल किस मोड़ पर अटक गया

मैं यौवन-सा भटकता गया

वो सावन-सा मटकती रहीं


उस संगम पर हमें फिर जा

खड़े हो गए जो समझ गए

वो कहते हम भी बड़े हो गए

शामें ढल गई फिर भी

बागों में चिड़िया चहकती रहीं

मैं पतझड़-सा झरता गया

वो बसंत-सा महकती रही


सपने जो सजाने लगे खुद 

को उन्हीं में बस आने लगे

अब तो मेरे हर संदेशों में

उन्हीं का नाम आने लगे 

मैं निकला खुद को सभ्य बनाने

तब नयनों ने कहा मंजिल वहीं 

चकोर से चंदा सजती रही

मैं मोरों-सा नृत्य करता गया

वो घटा-सा बरसती रही


बातें उन्हीं से शुरू करते हैं

वह ना मिले इस बात से डरते हैं

पहली बार किसी के लिए इतने भागे हैं

उन्हीं के यादों में रातें कितने जागे हैं

नदी भी मग्न होकर बहती रही

मैं कृष्ण-सा बनना चाहता रहा

वो खुद को राधा कहती रही


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