व्यवहारों से घाव भी भरते है
व्यवहारों से घाव भी भरते है
अंधों को आंख कहा पर
पहचान एहसास वही करते हैं
बड़े मील के छोटे पत्थर पर
मुश्किल पड़ाव वही होते हैं
बिन धारा के नाव भी चलते है
व्यवहारों से घाव भी भरते है
पतझड़ के बाद ही नई डाली है
वीरों की कथा सुनो तुम
निर्मल हृदय मिलते हो
सरहद पर भी फूल खिलते है
नदी तो थोड़े पानी में उफनती है
समुंदर - सा कहाँ बन पाती है
कर्म से तो ईश्वर भी लड़ते है
नए मंजिल तक नहीं पहुंचते है
बिन सूरज के भी ढलते
व्यवहारों से घाव भी भरते है
