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पहला प्यार

पहला प्यार

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पहला प्यार

एक अनछुआ एहसास

एक कसक मीठी -सी

एक ललक बचपन -सी

वो कल्पना की उड़ान

वो पहुंचना आसमान

वो अकेले मुस्कराना

वो यूं ही चौंक जाना


न लब कुछ कह पाए

रहे शर्माए-शर्माए

थी उम्र अल्हड़ -सी

तब लिखी पहली पाती।


पढ़ी वो कितने बार

कांप उठी हजारों बार

थी दिल की धड़कन वो

थी शर्म का बंधन जो

जो भेजनी चाही


जिसे पढ़कर मुस्कराई

फिर सहेजी किताबों में

खो गई ख्यालों में

न हिम्मत कभी आई

न वो पाती भेज पाई।


आज मिली किताबों में

हुई यादें फिर से ताजा

खुला वो बंद दरवाजा

अल्हड़ जवानी याद आई

जो पढ़ के शर्माई

वो कसक प्यारी- सी

वो छुअन निराली ही


जो कैद थी उसमें

जो सिर्फ मेरी थी

वो पहले प्रेम की पाती

जिसे रही सबसे छुपाती

खुद ही पढ़ती थी

खुद ही मुस्कराती थी

पर भेज न पाई

कभी भेज न पाई।


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