फ़ितूर ए इश्क़
फ़ितूर ए इश्क़
बंद कमरे में भी झोंका हवा का आता है
जैसे उसका मेरा सदियों से कोई नाता है
मेरे ख्वाबों की तसव्वुर थी तबस्सुम उसकी
उसका चेहरा दिवारों में भी नज़र आता है
मुझे अल्फ़ाज़ कोई याद भी आता ही नहीं
गुनगुनाने का वो इरशाद भी आता ही नहीं
उसके दिखते ही शब्द-शब्द जुबानी होते
ख़त्म करने का वो आदाब भी आता ही नहीं।