फ़िर याद तुम्हारी आई है
फ़िर याद तुम्हारी आई है
हवा के मीठे झोंकों पर
फ़ूलों की वादी से चुनकर
भीनी-सी खुशबू लाई है
फ़िर याद तुम्हारी आई है
फ़िर धुआँ उठा है चारों-सूँ
महसूस मुझे होता है यूँ
फ़िर दिल ने आग लगाई है
फ़िर याद तुम्हारी आई है
कुछ मेरी आँखे नम-सी हैं
ये रैना भी गुमसुम-सी है
सहमी-सी है घबराई है
फ़िर याद तुम्हारी आई है
मेरी पलकों की कोरों से
जो आँसू टपके हैं उनने
फ़िर मेरी शाम भिगाई है
फ़िर याद तुम्हारी आई है
क्या मेरे गम की थाह नहीं
क्या अब भी मिलेगी राह नहीं
क्या और बची रुसवाई है
फ़िर याद तुम्हारी आई है
क्या किस्मत से करूँ मैं गिले
अभी ज़ख्म पुराने भी थे न सिले
फ़िर चोट ज़िगर पर खाई है
फ़िर याद तुम्हारी आई है
मेरे पास बचा अब कुछ भी नहीं
यूँ दामन तो खाली भी नहीं
सूनापन है तन्हाई है
फ़िर याद तुम्हारी आई है।

