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Akhtar Ali Shah

Drama

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Akhtar Ali Shah

Drama

फिर भी मैं पराई हूँ

फिर भी मैं पराई हूँ

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गीत

जन्नत धरा बनाऊंगी

*******

मत मारो मुझको घर वालों,

जन्नत धारा बनाऊंगी।

अब भी मुझे पराई कहना,

छोडो तुम्हें सजाउंगी।

********

बेटी बनकर जन्म जगत में,

क्या अपराध हमारा है।

गंगा है हम, गंगा जल ने,

तो जग को उद्धारा है।

घाट घाट का पानी पीकर,

लोग हमारे गुण गाते।

गंदा हमको ही कहते हैं,

पाक साफ खुद कहलाते।

वहशीपन के समरांगण में,

खड़ी, नहीं अब लौटूंगी।

अर्धनग्न हर बेटी के शव,

पर मैं अश्क चढ़ाऊंगी।

मत मारो मुझको घर वालों,

जन्नत धरा बनाऊंगी।

अब भी मुझे पराई कहना,

छोड़ो तुम्हे सजाउंगी ।

*******

नाम गिनाने लग जाऊं तो,

शाम, रात फिर दिन आए।

इसलिए मैं नाम न लूंगी,

क्यों किसकी इज्जत जाए।

कितने हुए नराधम बेटी,

को नोचा,भोगा, मारा।

उजियारा तो उजियारा पर,

किया कलंकित अंधियारा।

मेरी जंग है हर बेटी के,

दुश्मन से, ललकार रही।

ऐ नामर्दों हिम्मत हो तो,

आओ मैं टकराऊंगी।

मत मारो मुझको घर वालों,

जन्नत धरा बनाऊंगी।

अब भी मुझे पराई कहना,

छोड़ो तुम्हें सजाउंगी।

*******

बेटे से आगे बेटी ने,

बढ़कर परचम थामा है।

लिखी इबारत जबजब उसने,

ना विराम ना कामा है।

चाहे कोई क्षेत्र रहा हो,

हार न उसने मानी है।

कमतर उसे समझना बेटे,

से "अनन्त" नादानी है।

फिर भी मै, पराई हूँ क्यों,

तुमने ऐसा मान लिया।

मैं धरती हूं संकट में हूँ,

कैसे चुप रह पाऊँगी। 

मत मारो मुझको घर वालों,

जन्नत धरा बनाऊँगी।

अब भी मुझे पराई कहना,

छोड़ो तुम्हें सजाऊँगी।

********

अख्तर अली शाह "अनंत"नीमच


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