फिर भी मैं पराई हूं
फिर भी मैं पराई हूं
छोड़ बाबुल का आँगन
तुम्हारी दुनिया सजाई है ,
जाने क्यों फिर भी कहते मुझको
पराई है ...
जिन हाथों ने पाला मुझको ,
उनको अकेला छोड़ दिया
तुम बिल्कुल अनजाने थे ,
पर तुम से रिश्ता जोड़ लिया
जाने क्यों फिर भी कहते मुझको ,
पराई है ....
गृह लक्ष्मी बन कर आती हूं,
घर आंगन महकाती हूं ,
तन ,मन ,धन सब लुटाती हूं ,
सबको अपना बनाती हूं ,
जाने क्यों फिर भी कहते मुझको ,
पराई है ...
कोई नहीं था दोष मेरा,
फिर भी जलना स्वीकार किया
कदम कदम पर संग तुम्हारे,
ठोकर मैंने भी खाई है
जाने क्यों फिर भी कहते मुझको ,
पराई है .....
सुख हो या दुख हो ,
संग तुम्हारे खड़ी रही
कितनी भी मुश्किल आई,
चट्टानों सी डटी रही
जाने क्यों फिर भी कहते मुझको ,
पराई है....