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Parmanand Nishad Sachin

Tragedy

3  

Parmanand Nishad Sachin

Tragedy

पेड़

पेड़

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प्रकृति कुछ रूठी-रूठी सी है,

सूर्य की निर्विघ्न तपन का,

जहां कहीं भी धूप सताती,

उसके नीचे झट सुस्ताते,

प्रकृति तुम्हारा आकर्षण है,

युग युग से सुंदर हो तुम,

तुम्ही कराती काम वो सारे,

तुम्ही दिखाती सुंदरता,

नरम है जितनी हवा उतनी,

फिजा खामोश है।


टहनियों पर ओस पी के,

हर कली बेहोश है।            

ओस बूंद दर्पण- सी

होगी बेल समान,

सांस मनुज की आंधी-सी

करती उसको हैरान,

बादल क्रोधित नभ घनघोर,

बिजली चमक रही चारों ओर,

प्रकृति से नहीं करो खिलवाड़,

वरना झेलो प्रकृति का प्रहार,

क्यों रूठी हो प्रकृति हमारी,

अजीब डर सारे नर-नारी में,


प्रकृति से हम बिछड़ते जा रहे,

जैसे परदेश जाकर बेटा माँ से

बिछड़ता है,

प्रकृति कुछ रूठी-रूठी सी है,

सूर्य की निर्विघ्न तपन का।

आओ हम सब मिलकर पेड़ लगाये,

प्रकृति को हरियाली बनाये।


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