पड़ोसन
पड़ोसन
सत्रह साल का था तब मैं और
उसकी उम्र थी सोलह की
पड़ोस में मेरे रहती थी वो
देखके उसको मचले जी
दोनों सुबह साइकिल पर जाते
एक ही कॉलेज में पढ़ते थे
बातचीत कम ही थी होती
शायद थोड़ा सा डरते थे
छिप छिप कर मैं उसे देखता
छत पर जब वो पढ़ती थी
कभी वो हंस देती थी लगता
शायद मुझपे मरती थी
हिम्मत मैं जुटा ना पाया
उस से मैं इजहार करुं
मन में ही बस कह देता था
मैं तुमसे ही प्यार करुं
दिन भर उसकी ही याद में
आहें भरता रहता था
अपने दिल की सारी बातें
बस सपनों में कहता था
मिल गए एक दिन रास्ते में हम
दिल था धड़क रहा मेरा
पर सोचा था आज ही कहना
सदिओं से आशिक़ हूँ तेरा
बात ये सुन के बोली वो
कहती मेरे दोस्त तुम
कोई और है मेरे दिल में
कर गयी मुझको वो गुमसुम
घर आकर मैं रोया था जो
आँख से आंसू बहने लगे
क्या हुआ है तुमको बेटा
घर वाले भी कहने लगे
अगले दिन मैं छत पे खड़ा था
एक नई पड़ोसन आई थी
मुझे देख शरमाई थी वो
मुझको भी वो भायी थी

