पढ़े लिखे बेरोज़गार।
पढ़े लिखे बेरोज़गार।
मेरा दिल एक युद्ध-क्षेत्र अब बन गया यार,
भ्रष्टाचार मुक्त भारत करना चाहते ही यार।
पहली नौकरी हमेशा सबसे होती ही ख़ास,
जब पहला वेतन मिले जब ख़त्म हो मास।
लोग जब पूछते हमें, बार-बार एक ही बात,
पढ़े लिखे बेरोजगार तुम, काम न करते हो।
इतना ही ख़्याल तो, कोई नौकरी दिलाएँ,
बेरोज़गारी इतनी बढ़ीं वेतन कम मिलता।
दो शर्तों पे करें काम,इमानदारी सच नाम,
बुजुर्गो से सदाचार सच बोलना ही सीखा।
ना बेइमानी ठगी दग़ा,इमानदारी सच सदा,
धोखा ठगी झूठ-कपट को ना करें सजदा।
हमारा दुख-दर्द कोई भी तो नहीं समझें यहाँ,
अपनी व्यथा फ़िर किस से शेयर करेगें यहाँ।
पहली नौकरी मम्मी जी के स्कूल में की हमने,
अनुशासित होकर पूरी तन्मयता से की हमने।
सबसे पहले बटन वाली फैक्ट्री में करी हमने,
पैकेजिंग सुपरवाइजर की पोस्ट पर की हमने।
फ़िर धागा मिल में उत्पादन विभाग की हमने,
सुबह से लेकर रात तक शिफ्ट में करी हमने।
शादी के कुछ साल बाद फ़िर पढाई की हमने,
पोस्ट ग्रेजुएट मास्टर डिग्री में तभी करी हमने।
लाइब्रेरी का निरीक्षण एक साल में ये दो बार,
दोनों स्कूलों में काम करके रिलीव हुआ यार।
कितना प्राइवेट स्कूल कॉलेज करते यह ज़ुर्म,
शोषण होने से खून से लथपथ तन और मन।
