पचहत्तर वर्ष की आजादी
पचहत्तर वर्ष की आजादी
थे आजादी के मतवाले, उन्हें फांसी ही भाती थी,
एक एक हुंकार ही उनकी, गोरों को हिलाती थी,
धन्य हैं वो मेरी माता, वो क्षत्राणी माँ भारत की,
जुल्म कितना करे कोई, उन्हें आज़ादी भाती थी।
अजब थे उनके वो जज्बे, अजब थी उनकी उन्मादी,
सूर्य अब गोरों का डूबेगा, ये आशा तुमने थी बांधी,
अहिंसा की या हिंसा की, जो भी राह बस चुन ली,
थी मंज़िल एक ही सबकी, भारत माँ की आज़ादी।।
जो होते आज वो जिंदा, तो कितना ही वो पछताते,
इस आलम को पाने को, हम आज़ादी ही क्यों लाते,
गए अंग्रेज़ ही केवल बस अपनी छोड़ कर धरती,
है गुलामी मानसिकता में , दवा इसकी कहां पाते।।
पचहत्तर वर्ष की आजादी , है ये अमृत वर्ष कहलाता,
चलो कुछ ऐसा कर जाएं, हो जो उनको बहुत भाता,
मिटा कर खाई, इस दिल से, धर्म और जात पात की,
भारतीय हैं यही पहचान, और भारत माँ ही बस माता।।