पछतायेगा।
पछतायेगा।
लाख जतन कर ले तू प्राणी, पुनः ना यह जन्म पायेगा।
पांच तत्वों से बनी यह काया, माटी में ही मिल जाएगा।।
समय रहते अब भी चेत जा, देव भी तरसते इसे पाने को,
स्थूल रूप में ही संभव है, उस ब्रह्म- ज्ञान को जानने को,
रहनी -सहनी अभी भी सुधार ले, फिर पीछे पछतायेगा।
लाख जतन....
प्रेयश मार्ग से अभी भी हटकर, प्रेयश मार्ग की चिंता कर,
धन दौलत तो हाथ का मैल है, अध्यात्म धन की फिक़र तू कर,
फँस जाएगा अपने ही जाल में, जो गुरु महिमा ना गायेगा।
लाख जतन....
स्वर्ग और नर्क की चिंता ना कर, सब कर्मों का ही चिट्ठा है,
परोपकार, निष्काम सेवा, स्वर्ग का ही एक हिस्सा है,
गुरु मंत्र में वह जादू है, पल में भव से पार हो जाएगा।
लाख जतन..........