मन की गहराई सागर सी
मन की गहराई सागर सी
खारे सागर ने समेट अथाह रखे हैं
जाने कितने अमूल्य रत्न भरे हैं।
पर उसको इसका कोई दर्प नहीं
हो अविरल बहती सुधा या गरल सही।
कर प्रयत्न जो तल तक कदम बढ़ाएगा
भाँति-भाँति के अनमोल रतन वो पाएगा।
मानव मन की गहराई भी सागर सी
ज्यों मधु और विषाद की लहराई गागर सी।
लाख जतन तू कर ले बन्दे,
कर ले चाहे नित जितने वन्दे।
जब तक मन का मैल मिटे ना,
तब तक तो कहीं चैन मिले ना।
चित में उठती लहर ललक की
शमन करें जो अगन दहक की।
चैतन्य वही धीर वीर कहलाएगा
जीवन अपना सफल बनाएगा।
यदि रखें विचार रत्नाकर सा
कुसुमित हो जीवन वसुधा सा।
स्नेह पुष्प जब मन में खिलेगा,
जीवन उपवन महक उठेगा।।