जिंदगी के लम्हें कुछ ऐसे ही है
जिंदगी के लम्हें कुछ ऐसे ही है
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नहीं रखना चाहता है वह हमसे रिश्ता कोई,
हम हैं कि निभाए जा रहे हैं।
फंसा दिया है उसने प्रेम जाल में मुझको,
हम हैं कि जाल को मजबूत बनाए जा रहे हैं।
तोड़ता है दिन-रात वह विश्वास को मेरे,
हम हैं कि विश्वास को खोए जा रहे हैं।
तोड़ रहा है मेरे आत्मसम्मान को ब्लैकमेल करके,
हम हैं कि उसकी साजिश को नहीं समझ पा रहे हैं।
आज समझ में आई जब उनकी चालाकियां,
बंधन से कैसे निकलना है हम सोचे जा रहे हैं।
धिक्कार दिया जब उसने मेरे बाप को,
उनसे हर रिश्ता तोड़ कर हम दूर जा रहे हैं।
उनको शायद भ्
रम था हमारे वापस आने का,
इसीलिए वह खुशियां मनाएं जा रहे हैं।
मुझे बनाना था एक नई मंजिल,
हम तो रास्ता बनाए जा रहे हैं।
शाम ढले जब उनका भ्रम टूट गया,
वह दर बदर मुझे खोजें जा रहे हैं।
जब मैं ना मिली उनको किसी आशियाने पर,
वह आंसू बहाते घर चले जा रहे हैं।
क्यों नहीं रोक लिया मैंने उसको जानें से,
यही सोच सोच कर पछताए जा रहे हैं।
मैं ढूंढ लूंगा उसको दुनिया के हर कोने से,
यही बार-बार दोहराए जा रहे हैं।
खुश रखूंगा अब मैं उसको हमेशा,
अकेले ही कसम खाए जा रहे हैं।