"चेहरा"
"चेहरा"
सच, झूठ का नकाब ओढ़े,
कहीं बेबसी की चादर ताने
हैं कई चेहरे के चेहरे ।
किसी का मौन, कहीं पर शोर,
किसी पर घृणा, कहीं पर दया,
अलग अलग लिखावट के हैं चेहरे सारे।
मलिन चेहरों से, चमकते चेहरे की इच्छा,
रंग स्वेत होने की तीव्र अभिलाषा,
सब झोल-माल इस चेहरे की तृष्णा।
बालपन की अठखेलियों की खिलखिलाहट,
यौवन की मधुशाला, अनुभवी झुर्रियों की गहराई,
सब इस चेहरे में है समायी।।