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Praveen Gola

Abstract

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Praveen Gola

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पौराणिक कथा - कहाँ बसते हैं कामदेव ?

पौराणिक कथा - कहाँ बसते हैं कामदेव ?

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कहाँ बसते हैं कामदेव ? ये पूछ बैठी मुझसे एक दिन ....यौवन में कदम रखने वाली, भोली - भाली एक बाला निराली।

अब कौन सुनाये इस युग में उसको, वो सदियों पुरानी पौराणिक कथायें, जहाँ काम और रति लिप्त रहते थे, करने में नई - नई रति क्रीड़ाएँ।

पर उसके सवाल ने मुझे जोरों से हँसा दिया, पुराने इतिहास को फिर शुरुआत से पढ़ा दिया, स्त्री के छुपे हुए नाजुक और कोमल अंगों में, कामदेव बसते हैं जहाँ बहती हवाऐं तरंगों में।

स्त्रियों के कटाक्ष और उनकी केश राशि, उनकी खूबसूरत जंघा जो लगे मदमाती, सुडौल वक्ष जिन्हे छूने को ये मन मचले, और चंचल नाभि जहाँ से अमृत टपके।

खुलते - बंद होते किसी युवती के सुर्ख अधर, काली कोयल की कूक जो लगे बेखबर, चांदनी रात जिसमे सजते कई रंगीन सपने साथ, वर्षा के मेघ जो समझ लेते हजारों अनकही बात।

कामदेव बसते हैं किसी सुन्दर फूल में, मधुर - मधुर गीत की किसी कामुक धुन में, काम-वासनाओं में लिप्त मनुष्य की संगति में, सुहानी और मंद हवा के कणों की धूल में।

स्त्रियों के नयन, ललाट, भौंह और होठों पर, कामदेव का प्रभाव रहता है यहाँ जोरों पर, इसलिये जब कोई पर पुरुष इन पर नज़र दौड़ाता है, काम का तीर खुद ~ब ~खुद उस पर चल जाता है।

कामदेव के बाण ही नहीं उनका मंत्र भी, विपरीत लिंग के व्यक्ति को आकर्षित करता है, इसलिये मनचाहा प्यार उसी को मिलता है जो नियामित रुप से उसको जपता है।

ये सुन वो भोली बाला थोड़ा सा शरमाई, फिर हौले से वो मंत्र मेरे कानों में गुनगुनाई ...." ॐ कामदेवाय विद्महे, रति प्रियायै धीमहि, तन्नो अनंग प्रचोदयात्’ "।।


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