पैमाने
पैमाने
तो फिर वो कौनसे पैमाने हैं
आखिर यहाँ !
चाहे भी खरा जिन पर
उतर नहीं पाता हूँ मैं !
सब कुछ जीत कर भी मैं
हार जाता फिर वहाँ !
एहसास उसे मेरे इश्क़ का
ठीक से नहीं करा पाता हूँ मैं !
तो फिर वो कौनसे पैमाने हैं
आखिर यहाँ !
चाहे भी खरा जिन पर
उतर नहीं पाता हूँ मैं !
सब कुछ जीत कर भी मैं
हार जाता फिर वहाँ !
एहसास उसे मेरे इश्क़ का
ठीक से नहीं करा पाता हूँ मैं !