पैग़ाम इश्क़ का
पैग़ाम इश्क़ का
खुशबुओं में लिपटी लिफाफे में सिमटी
ले जा रे परिंदे मेरा ये पैग़ाम इश्क़ का
कहना उनसे मेरे मन की हर एक बात
या हो सके तो उड़ा लाना तुम उन्हें अपने साथ
मेरे सारे सपने मेरे सारे अरमान का
ले जा परिंदे मेरा ये पैग़ाम इश्क़ का
आसमान में चांद तारे देख देख कितने रात गुजरे
अब तो आसमान भी सुना लगता है बिन तुम्हारे
मन्नते मांगते नहीं थकते तुम्हारे नाम का
ले जा रे परिंदे मेरा ये पैग़ाम इश्क़ का
वो आएं रूबरू तो कुछ बात बने
आखिर कब तक ये खतों का सिलसला चले
कर लेंगे हम भी कुछ बातें काम का।