जीत का जश्न
जीत का जश्न
अब तो बढ चले हम तेरी ओर
जो छूटा जहां उसको वही रहने दिया।
तय नहीं था कुछ भी ऐसा करेंगे
जो सोचा नहीं था उसे होने दिया।
यूं तो बहुत मिले रहों में रोकने के लिए
थम जाएं ऐसों से ख़ुद को न मिलने दिया।
ताउम्र संघर्ष करते रहे हैं इस दिन के लिए,
एक रात भी चैन से आंखों को न सोने दिया।
अब तो ये वक्त भी हमारा है और जीत का हक भी
जीत के जश्न को अपने जहन से न खोने दिया।