पानी की तरह बनना...
पानी की तरह बनना...
कभी मेरा मन करता है मैं पानी की तरह बन जाऊँ...
जब चाहे बहती जाऊँ....
जहाँ चाहूँ बहती जाऊँ...
हर रंग में रंगती जाऊँ....
हर आकार में ढलती जाऊँ....
ऊँचे पहाड़ो को धता बताकर झरने की तरह बहती जाऊँ....
लेकिन क्या यह इतना आसान है?
अपनी रौ में बहना?
झरने की मानिंद ऊँचाई पा लेना?
और किसी के भी रंग में रंगना?
नही ! नही !!
किसी के रंग में रंगने की औरत की चाह को कोई प्रेम में समर्पण नही कहेगा.....
बल्कि उसकी चाह को उसकी 'ज़रूरत' क़रार दिया जाएगा....
उसे 'अवलेबल' समझा जाएगा....
उसे 'कुलटा' जैसे और विशेषणों से नवाज़ा जाएगा...
उसके आते ही औरतों में फुसफुसाहट होगी...
निग़ाहों निगाहों में उसे 'मैसेज' मिल जाएगा....
क्या मेरा पानी की तरह बनना आसान है?