मैं और मेरी पहचान
मैं और मेरी पहचान
मैं कौन हूँ मेरी पहचान क्या ?
जीवन के समर में मेरा मुकाम क्या
जिसका हर पल छिपा हो अभाव में
उसके जीवन का फिर भाव क्या ?
किसको कह सकूँ अपनी व्यथा
सुनने को अपना कोई नही यहाँ
मैं कौन हूँ मेरी पहचान क्या ?
जीवन के सुंदर बागों में
अब बहार रही कहाँ,
तृप्त हो पाता ह्रदय वो
सुन्दर कोमल संगीत कहाँ
हर तरफ हैं मचा कोहराम नया,
किसी को किसी से क्या काम,
अपना भी अब तो रोज लगने लगा नया।
मैं कौन हूँ मेरी पहचान क्या ?
जीवन के समर में मेरा मुक़ाम क्या।