भारतीय सड़क की व्यथा
भारतीय सड़क की व्यथा
सड़क कही खचाखच, कहि सुनसान,
ले जाती हर रोज अंत में
मुझको मेरे घर में।
सड़क कही सपाट, कही उबड़ उखड़ी ये।
कुछ इंतजार में कब मुझे सुंदर यौवन मिले
कुछ रो रहे अपने दिल पे गहरे छिद्र से
और कुछ हर पल इतरा रहे अपने भाग्य पे।।
सड़क कही खचाखच, कही बियाबान।।
ले जाती हर पथिक को हर रोज
अंत में उसके घर पे।।
कही चलती हैं रोज इस पर रोडरोलर,
और कही बुलडोज़र
पर उफ्फ न करती ये बस इंतजार में
कब होगा मेरा श्रृंगार, कब मुझे मिलेगा प्यार ये।।
जो भी आता, मुझपे बरसाता गंदगी का कहर,
कही पहाड़ कूड़े के ढ़ेर, कही लटके पड़े है तार।।
हर तरफ गंदगी, कही कीचड़ और मूत्र बिकार।
सड़क कब होगा तेरा तुझपर अधिकार।।
जब तू भी इतरा के कहे, देखो मैं हूॅं प्यारी सड़क।।
चलना मुझपे थोड़ा धीरे धीरे, कही खराब
हो न जाये मेरा मेकअप।।