माँ और क्या।।
माँ और क्या।।
मेरे उर के अंतर्मन में एक भव्य भाव उभार लिए।
सब्द निकला माँ और क्या?
माँ करुणा की तुम सागर हो,
तुम शीर्ष पद परम दिव्य देवयानी हो।।
तुम ही सुधा और तुम ही विष्णु प्रिया रुक्मणी हो,
मेरे उर के अंतर्मन से एक भब्य भाव उभार लिए
शब्द निकला माँ और क्या?
तुम होती हो हर दर्द भूल जाता हूँ,
तुम होती हो पास तो दुनिया सिमट जाती हैं
कितनी तपस्या से तुमने मुझको सहेजा
न धूप न बारिस हर तूफान में छिपा
अपने कोमल आँचल में,
माँ और क्या?
जितना लिखू कम लगे
तेरी पूजा के लिए।
देह न्योछावर करके भी ऋण न चुका सकता।।
माँ और क्या?