मोहब्बत
मोहब्बत
झलक भर भी देखते ही तुम्हारी आँखों की
पुतलियों में जुगनुओं सी चमक नाच उठती है,
इस चमक का एहसास
जिस्म को बेधड़क दस्तक दे देता है,
और रुएँ खुद बा खुद सरसराने लगती हैं,
इन सरसरती रुओं का पैगाम
नसों के लहुं तक पहुंचते ही
धड़कन की तेज़ी का शोर
बहार तक गूंजने लगता है।
सूखे बेरंग होठ जाने कैसे
गुलाब से सारा रंग चुरा लाते हैं,
और दिल के एक कोने में छुपे
बलिवाज़ हर एहसास लफ़्ज़ों का
चोला पहने बेबाक होठों से उम्र पड़ते हैं,
गज़ब है सच और मैं पागल आज तक
इसी खुशफहमी में जीती रही,
कि तुमसे सिर्फ मैं मोहब्बत करती हूँ,
यहाँ तो जिस्म का हर ज़र्रा इसी काम में मसगुल है।