STORYMIRROR

कल्पना रामानी

Abstract

4  

कल्पना रामानी

Abstract

एक सूरज सृष्टि में

एक सूरज सृष्टि में

1 min
346

एक सूरज सृष्टि में, नव प्राण भरता है सदा।

तन मनस से रोग सारे, दूर रखता है सदा।

 

एक धरती गोद में, हर जीव को अपनी धरे  

एक ही आकाश उन पर, छाँव करता है सदा। 

 

अनगिनत फूलों का होता, धाम गुलशन एक ही

एक तरु कई पाखियों का, नीड़ बुनता है सदा।

 

कोटि जन के नीर से, तर कंठ करती इक नदी

एक सागर में जलज, संसार बसता है सदा। 

 

एक अकेला साज़ बजकर, बाँधता अनगिन धुनें

इक समर्पित मन हजारों, छंद रचता है सदा। 

 

एक सज्जन यदि बढ़ाए, शुभ कदम सद राह पर

कारवाँ फिर सैकड़ों का, साथ बढ़ता है सदा। 

  

आप हैं जग में अकेले, ‘कल्पना’ मत सोचिए

जो अकेला रब उसी के, संग रहता है सदा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract