फ़ोन की घंटी
फ़ोन की घंटी
घूमने मैं दिल्ली गया
दोस्त मेरा कहने लगा
छुट्टी है यहीं रह जाओ
मैं भी वहां रहने लगा
राष्ट्रपति भवन गए।
तलाशी हुई ,खूब टटोला
गेट पर एक पुलिस वाला
फ़ोन हमारा रख के बोला
वापिस आओ फिर ले जाना
ये नो फ़ोन जोन है
अलाउड़ नहीं फ़ोन है।
ऑफिस में मीटिंग चल रही थी
बॉस की प्रेजेंटेशन थी
सन्नाटा चारों और था
देनी नयी इनफार्मेशन थी।
बहुत से डेलिगेट बैठे
बाहर के भी मेहमान थे
ट्रिन ट्रिन बजी थी घंटी
सभी परेशान थे।
बॉस बोले बंद करो इसे
ये किसने रक्खा ऑन है
ये किसका मोबाइल फ़ोन है।
फिजिक्स की क्लास थी
पढाई का माहौल था
चैपटर ख़तम है करना
आज का ये गोल था।
इतने में एक घंटी बजी
पढाई की थी ल्य जो टूटी
टीचर गुस्सा हो गए थे
क्लास की भी हो गयी छुट्टी
गुस्से में फिर टीचर बोला-
कसूरवार कौन है
किसका बोला फ़ोन है।
शोक सभा में पंडित जी बोले
हाथ जोड़ो प्रणाम करो
मृतक की गति के लिए
दो मिनट का मौन धरो
इतने में एक आवाज आई
जैसे जोर से कोई हंस रहा
पंडित जी परेशान हुए
उन्होंने गुस्से में कहा
जल्दी से इसे बंद करो
ये कैसी रिंगटोन है
किसका बजता फ़ोन है।
काम इस के बिन न चलता
तंग भी है ये बहुत करता
आधा दिन है ये खा जाता
फिर भी इससे दिल न भरता
दोस्तों से बातें होतीं
फिर महफिलें हैं सजतीं
दिक्कत हमें तब है आती
गलत वक़्त जब घंटी बजती।