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Alka Nigam

Romance Fantasy Others

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Alka Nigam

Romance Fantasy Others

ओ माही रे

ओ माही रे

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ओ माही रे 

साँझ जब ढले

सूरज हम संग पिघले

देखने चंदा निकले

गगन तले

ओ माही रे


मन मेरा महकाने को

चंदन तुम बनके आना

साँझ की सीढ़ी पे चढ़के

तोड़ के तारे तुम लाना

तेरी बंद पलकों में 


बस जाऊंगी मैं

ओढ़ चुनरिया 

सज जाऊंगी मैं

बिछ जाओऊंगी मैं

ज्यों हो फूलों वाली 

कोई शिउली की डाली

महकेगा अपना मन


ओ माही रे 

साँझ जब ढले

सूरज हम संग पिघले

देखने चंदा निकले

गगन तले

ओ माही रे


रैन की बेला में छुपके

सारा जग जब सो जाय,

बेले की टहनी से फिसल

मेरे सेज पे तू आये।

कुछ रजनीगंधा

की महक लपेटे


कुछ रंग टेसू का

मुट्ठी में मीचे

मोहे रंग दे तू

प्रीत की डोरी में बंध

रैना बीते संग संग

महके तन महके मन


ओ माही रे 

साँझ जब ढले

सूरज हम संग पिघले

देखने चंदा निकले

गगन तले

ओ माही रे।ले


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