ओ लहरों सागर की सखियों
ओ लहरों सागर की सखियों
ओ लहरों सागर की सखियों
क्या खूब ठिठोली करते हो
कभी तो उठती बड़े वेग से
कभी सागर की बाहों में समा जाती हो...!!
कितना अद्भुत ये मंजर है
क्या खूब दिलों का संगम है
हर लहर में इक दीवानापन
हर मौज में इक सरगोशी है.....!!
खड़े किनारे मैं सोच रही हूं
ले चलो मुझे भी सागर की बाहों में
संग ठिठोली खूब करेंगे
धवल चांदनी बिखरी रातों में.....!!
बोलो ले चलोगी मुझको संग अपने
कंठ की प्यास नहीं मुझेगी
पर देह की तपन बुझा लूंगी
उस सागर के खारे पानी में.....!!
ओ सखियों सागर की लहरों
बात तुम इतनी मानो ना
मेरी इस ख्वाहिश को तुम सब
मिलकर पूरा कर दो ना.....!!