नया ज़माना
नया ज़माना
जाने कहाँ गए वो दिन जब इंसानियत
हुआ करती थी,
जब लोगों में संवेदनाएं थी सहानुभूति थी,
आज का इंसान मतलबी हो गया है,
दिखावे के चक्कर मे अपनापन भूल गया है,
सोशल मीडिया ही सब कुछ है अब तो,
यही तक सीमित है दोस्ती और रिश्ते,
मोबाइल से ही है आजकल रिश्ते निभते,
न किसी के दर्द से सरोकार,
न किसी से है किसी को सच्चा प्यार,
कभी भलाई कर दी किसी के लिये तो
सोशल मीडिया पर जताते हैं उपकार,
आ गया है नया ज़माना अब तो,
भूल गए हैं लोग बुज़ुर्गों के संस्कार,
अब तो बस इंसान का रिमोट मोबाइल बन गया है
जिसमे नहीं है भावनायें,
आज के दौर में मर चुकी हैं इंसान की संवेदनाएं ,
मारे जाते हैं अब तो इंसान के हाथ से जानवर भी
बेकसूर,
इंसान ने खुद को कुदरत का अपराधी बनाया है
फिर भी इंसान को खुद पर क्यों इतना गुरुर।