नवगीत
नवगीत
अरी सखी अंगना आएंगे
साहब जी इस बार
ढोल धमाके और नगाड़े
नयी-नयी सौगात
खूब तमाशे मेले होंगे
जलसे सब दिन-रात
बाटेंगे वो सपने घर-घर
वादों की बौछार
नहीं समझ मामूली इसको
इसमें बड़ी धमाल
पाँच बरस के बाद पहनकर
वो आएंगे शाॅल
झुक-झुक कर फिर बड़ी अदा से
बरसाएँगे प्यार
झोपड़ पट्टी रोशन होगी
बंधेंगे बंदनवार
बीच-बीच में साहब जी के
दौरे बारम्बार
टूटे-फूटे नल सुधरेंगे
बरसेगी जलधार
कान खोल कर सुन ले पगली
तू मूरख अनजानी
पाँच बरस में ही फलते हैं
ये वादे सुल्तानी
तू भी अपनी अर्जी लिखकर
रख लेना तैयार।