नव भोर
नव भोर
बीत गई अब रात, हुआ दिनमान लिए नव भोर सुहानी
देख खिले अरविंद सरोवर, गावत कोयल गान दिवानी।
जो अब नाहिं उठे पछतावत, बात यही बस आज बखानी
हाथ रहे मलता वह तो, अरु हाथ कभी कछु देख न आनी।
बीत गई अब रात, हुआ दिनमान लिए नव भोर सुहानी
देख खिले अरविंद सरोवर, गावत कोयल गान दिवानी।
जो अब नाहिं उठे पछतावत, बात यही बस आज बखानी
हाथ रहे मलता वह तो, अरु हाथ कभी कछु देख न आनी।