"बंधन स्नेह का"
"बंधन स्नेह का"
कुछ रिश्ते होते हैं ऐसे,जिनके नाम नहीं होते।
होते हैं अनमोल परंतु,उनके दाम नहीं होते।।
इन रिश्तों पर अपने मन का,कोई जोर नहीं चलता।
स्नेह डोर का होता बंधन,छाँव तले उसकी पलता।।
कहो गोपियों का क्या रिश्ता,उस मतवाले नटवर से।
खो गईं थी नाम में उनके,मोह छुटा था घर वर से।।
ये प्यारे से रिश्ते देखो, अनजाने बन जाते हैं।
मिले स्नेह का साँचा इनको,जिनमें ये ढल जाते हैं।।