रिश्तों से बँधी नारी
रिश्तों से बँधी नारी
दिल से हूँ कोमल मगर इरादों से कठोर।
भूल मत करना समझने की मुझे कमजोर।
हूँ विधाता की रची,मैं तो वो अनुपम रचना।
होती रही जिससे पूरी, सृष्टि की संरचना।
सुबह नई जो ले आये, हूँ वही मै भोर।
भूल मत करना......
बन बेटी देती सम्मान,बहना बन है प्यार।
भार्या बनकर देती साथ,माँ बन है दुलार।
बँधी जो सभीे रिश्तों से,हूँ वही मैं डोर।
भूल मत करना...
मेरी अस्मिता पर जब, करे है कोई प्रहार।
चण्डिका बनकर करती हूँ, मैं उसका संहार।
मेरी शक्ति के आगे चले न कोई जोर।
भूल मत करना....