STORYMIRROR

Shakun Agarwal

Tragedy

3  

Shakun Agarwal

Tragedy

नदी की करुण पुकार

नदी की करुण पुकार

1 min
261


नदी हूँ मैं पुकारती तुम को 

होकर बड़ी अधीर।

जीवन जो देता है तुम को

मैं तो हूँ वह नीर।।


खतरे में पड़ा है देखो 

आज मेरा वजूद

बैठा है फिर भी मानव 

तू क्यूँ आँखें मूंद 

तुम्हारे लिए ही धरा पे आई 

पर्वतों को चीर।।


जीवनदायिनी कहा है तुमने

कहा है मुझ को माता।

फिर गंदगी और प्रदूषण से 

क्यूँ जोड़ा मेरा नाता।

छोड़ कर बच्चों को अपने 

किसे सुनाऊँ पीर।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy