नदी की करुण पुकार
नदी की करुण पुकार
नदी हूँ मैं पुकारती तुम को
होकर बड़ी अधीर।
जीवन जो देता है तुम को
मैं तो हूँ वह नीर।।
खतरे में पड़ा है देखो
आज मेरा वजूद
बैठा है फिर भी मानव
तू क्यूँ आँखें मूंद
तुम्हारे लिए ही धरा पे आई
पर्वतों को चीर।।
जीवनदायिनी कहा है तुमने
कहा है मुझ को माता।
फिर गंदगी और प्रदूषण से
क्यूँ जोड़ा मेरा नाता।
छोड़ कर बच्चों को अपने
किसे सुनाऊँ पीर।।
