नव आगाज़ है ये
नव आगाज़ है ये


मीरा नामक एक स्त्री अपने सुखी और समृद्ध परिवारजनों के साथ ख़ुशी-खुशी रहती थी उसके परिवार में सास-ससुर, पति और बच्चे थे।मीरा पढ़ाई कर रही थी सरकारी नौकरी हेतु। एक दुकान थी जिससे घर का खर्च चलता था। समय बहुत अच्छे से गुज़र रहा था। लेकिन शायद नियति को ये खुशियाँ मंजूर नहीं था..वक़्त विकट रूप दिखाने लगा था।
उन्हें पता भी न चला कि कब वो धीरे-धीरे गहरे कर्ज़ में डूब गए.. सास-ससुर भी ऐसी प्रतिकूल विकट परिस्थितियों में छोड़कर चल बसे। . पति को सामाजिकता की परख नहीं थी।
लोगों से बातचीत करने और विश्वास बनाये रखने का हुनर नहीं था। अपने ही लोगों ने सभी दुकानदारों को भड़का कर मार्केट भी खराब कर दिया जिससे उन्होंने दुकान हेतु उधारी देने से इंकार कर दिया। मीरा के खिलाफ उसके पति को खूब भड़काया। सभी ने उनका साथ छोड़ दिया सिवाय मीरा के पीहर वालों के। परिस्तिथियाँ चारों ओर से
प्रतिकूल हो चली थी। पर फिर भी मीरा ने हिम्मत नहीं हारी।
लोगों का डटकर सामना किया। मीरा ने अपने पिताजी से आर्थिक और शारीरिक सहायता लेकर दुकान बढ़ाई। अपनी भी पढ़ाई पूरी की और सभी परीक्षाओं में सफ़ल होने के बाद मीरा को अब सरकारी नौकरी मिल गयी।कुछ समय बाद धीरे-धीरे परिस्थितियां पुनः सुधरने लगी। वक़्त अब फिर से साथ देने लगा। लोगों का मुँह भी बंद हो गया था अब सभी मीरा को सम्मान की दृष्टि से देखने लगे.. एक बार फिर जीत हो रहीं थीं सच की.. विश्वास की.. कर्तव्य की और श्रम की.. हार रहा था. झूठ। रो रही थी अफ़वाहें.. लौट रहा था प्रेम और सौहार्द भाव।
पति ने परिस्थितियों को अनुकूल होते देख मीरा से कहा-अब सब पुनः पहले जैसा हो रहा है..
मीरा ने कहा - देखियेगा एकदिन हम पहले से भी ज्यादा समृद्ध होंगे। अभी तो नव आगाज़ है ये। दोनों कुछ सोच कर मुस्करा दिये।