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Nilofar Farooqui Tauseef

Romance

3  

Nilofar Farooqui Tauseef

Romance

नशा

नशा

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280

तुमने जो ज़माने को दीवाना बना रखा है

क्या अपने आँखों को तुमने मयखाना बना रखा है।


क़त्ल करके निगाहें, फिर पूछती हैं हाल

 क्या तुमने इन आँखों को पैमाना बना रखा है।


नशा जो तुझमें है, वो अब और कहाँ है साहेब,

आंखों में इस मरीज़ का दवाखाना बना रखा है।


लबों से जो छलकती है जाम की प्याली

इस छलकते जाम ने, शराबखाना बना रखा है।


ये इश्क़ का नशा अब क्या उतरेगा नीलोफ़र

मयकशी ने हर जगह मयखाना बना रखा है।


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