STORYMIRROR

Manmohan Bhatia

Drama

3  

Manmohan Bhatia

Drama

नशा

नशा

1 min
277

नशा ही नशा है चारों ओर

कहीं शराब का नशा 

कहीं शबाब का नशा

कहीं सत्ता का नशा।


शराब का नशा थोड़ी देर का

शबाब का नशा थोड़ी उम्र का

सत्ता का नशा है ताउम्र का

नहीं छूटता सत्ता का नशा।


बढ़ता जाता है कुर्सी का नशा

गरीबों को कुचलते हुए

धनवानों को साथ लेते हुए

नाजायज को जायज बनाते हुए।


महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाते हुए

नित नए हथकंडे अपनाते हुए

विरोधियों को कुचलते हुए

कुर्सी से चिपकते हुए।


कब्र में भी कुर्सी ले जाते हुए

थूक कर चाटते हुए

हास्य का पात्र बनते हुए

बेशर्मी का नकाब ओढ़े हुए।


सत्ता के नशे में डूबे हुए

नशा ही नशा है चारों ओर।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama