प्रेम
प्रेम
वो हाथ
खून से सने हुए,
क्यों बेताब हैं
और खून खराबा को।
क्या मिलेगा उन्हें
किसी का सुहाग उजाड़ कर,
क्या मिलेगा उन्हें
मासूम बच्चों को यतीम कर।
क्यों नहीं वे बुद्ध से
कुछ नसीहत लेते हैं,
छोड़ो हिंसा
अहिंसा के पुजारी बनो,
प्रेम की ज्योत से
नफरत का अंधेरा दूर करो।
