नशा
नशा


तुमने जो ज़माने को दीवाना बना रखा है
क्या अपने आँखों को तुमने मयखाना बना रखा है
क़त्ल करके निगाहें, फिर पूछती हैं हाल
क्या तुमने इन आँखों को पैमाना बना रखा है
नशा जो तुझ में है, वो अब और कहाँ है साहेब,
आँखों में इस मरीज़ का दवाखाना बना रखा है
लबों से जो छलकती है जाम की प्याली
इस छलकते जाम ने, शराब खाना बना रखा है।
ये इश्क़ का नशा अब क्या उतरेगा नीलोफ़र
मयकशी ने हर जगह मयखाना बना रखा है