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नक़ाब

नक़ाब

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देखा था मैंने

तुझे खुद को बारिश की बूंदो से

जदोजहद करते हुए ताकि कही वो

तुझे छू कर ना गुजर जाए


लगा मुझे की शायद तुझे भाता नहीं

की कोई अनजान तुझे यूही छू कर गुजर जाए

पर जब हवाओ का मिजाज कुछ अलग सा हुआ

और समय ने अपना चादर फैलाया तो


मालुम हुआ कि खामखां मै ये सब भांप रहा था

तुझे तो डर था की कही वो बारिश की

बूंद तेरे मुख से तेरी नकाव को ना धो दे


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