नफ़रत को मिटाकर छोड़ेंगे
नफ़रत को मिटाकर छोड़ेंगे
नफ़रत खाना, नफ़रत पीना, वो नफ़रत ही ओढ़ेंगे ।
लहू में जिनके नफ़रत है, वो नफ़रत को क्यों छोड़ेंगे।
रोजी नफ़रत,रोटी नफ़रत, मान सम्मान नफ़रत है।
नफ़रत उनका जीवन और पहचान नफरत है।
उनकी श्रेष्ठता ही नफ़रत है, तो उससे मुँह क्यों मोड़ेंगे।।
उनकी शुरुआत नफ़रत है, सिर्फ दिखावा है प्यार का।
अंत भी नफ़रत ही होगी,पूरी दुनिया में फैला के छोड़ेंगे।।
अमरबेल जैसे वे परजीवी पादप हैं, बिना जड़-पत्तों के।
खून चूस कर जीवित हैं, कुछ और दरख्तों के।
खून भी चूसेंगे और आपस में लड़ा कर छोड़ेंगे।
वो जो भी कमज़र्फ हैं वतन को बदनाम करते हैं।
नफ़रत फैला कर खुद को , सरनाम करते हैं।
जो भी हो अंज़ाम अब , नफ़रत को मिटा कर छोड़ेंगे।
