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Sonam Gupta

Abstract

4.3  

Sonam Gupta

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नमक बना चाहती हूं मै

नमक बना चाहती हूं मै

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मैं नमक बनना चाहती हूं

ज्यादा नहीं

पर तुम्हारी ज़िन्दगी में आना चाहती हूं

मैं नमक बनना चाहती हूं


तुम्हारी खिलती हुई ज़िन्दगी में जीना चाहती हूं ।

ज्यादा नहीं पर तुम में घुलना चाहती हूं ,

मैं नमक बनना चाहती हूं


इश्क़ तुम से किया है मैं उसे निभाना चाहती हूं।

मरकर भी तुम में समाना चाहती हूं।

मैं नमक बनना चाहती हूं


तुम्हारी हस्ती मुस्कुराती गम से

लड़जाती ज़िन्दगी में आना चाहती हूं

खिले हुए गुलाब, मुरझाए हुए पत्तों,

लताओ की तरह खिलखिलाना चाहती हूं।

मैं नमक बनना चाहती हूं


आँसुओं में, रूह में,

तुम्हारी हर किताब में समाना चाहती हूं।

मेरे किसी भी आसुओं में तुम ना हो

क्योंकि मैं तुम में मरजाना चाहती हूं।


तुम्हारी हर एक चीज में खुद को पाना चाहती हूं

बस मैं तुम में मर जाना चाहती हूं मैं।

बस नमक बनना चाहती हूं मैं

नमक बना चाहती हूं मैं।


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