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Sonam Gupta

Abstract

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Sonam Gupta

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“ऐसी है मेरी मां”

“ऐसी है मेरी मां”

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रोटी जल जाने पे, हस के मुस्कुरा देती है

पानी गिर जाने पे, “चल जा" कहकर भाग देती है

जब पापा की डाट पड़ती है

झट से मुझे आंचल में समा लेती है

ऐसी है मेरी मां


जली हुई रोटियों को वो खा लेती है

फूल-सी सिकी हुई रोटियों का

प्यार मुझे पर उमड़ देती है

गिरे हुए पानी को सोख लेती है

ऐसी है मेरी मां।


किताबो का भंडार मुझे लाकर देती है

काच के गिलास के टुकड़ों

को वो खुद उठा लेती है।

ऐसी है मेरी मां


घर देर से आने पर

हजारों प्रश्नों के पहाड़ खड़ा कर देती है

कॉलेज में होने पर

एक फ़ोन तक नहीं करती है

कहीं मेरा ध्यान ना भटक जाए पढ़ाई से,

इस बात से वो बहुत डरती है

ऐसी है मेरी मां


पापा के पूछने पर “पढ़ रही है” बोल देती है,

“शादी की उम्र हो गई है " बोलने पर वो बात को घुमा देती है

ऐसी है मेरी मां।


कपड़ो को चुन चुन कर मुझे पहनाती है

कहीं में युवती-सी ना दिखूँ

इस बात से घबराती है

समाज से छुपाकर

मुझे ऊँचाइयों तक पहुंचाना चाहती है

ऐसी है मेरी मां।


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