क्वारंटाइन में अधूरी मुलाकात
क्वारंटाइन में अधूरी मुलाकात
खुद को समझाना भी कितना मुश्किल हो जाता है
जब आखरी बार मिलना था, उस दिन लॉंकडाउन
लग जाता है।
वो अधूरी मुलाकात रह जाती है, वो अधूरी बात
रह जाती है।
गिले शिकवे के लिए कोई पल नहीं रह जाता है
जब आखरी बार मिलना था उस दिन लॉंकडाउन
लग जाता है।
जैसे पूरा संसार यह चाहता है
लॉंकडाउन के दिनो भी उसका जिक्र होठों पर
आ जाता है।
उसकी बेसब्र – सी आंखे मुझ पर रह जाती थी,
बालों को वो सहलाना भूल जाती है
देख कर भी नज़रअंदाज़ करना उसको आता है
जब आखरी बार मिलना था उस दिन लॉकडाउन
लग जाता है।
सब्र का मेरा बाँध टूट जाता है,
जैसे एक बार मैं उसे मिलना चाहता हूँ
वो अधूरी सी तड़प दिल में रह जाती है
वो अधूरी सी ख़्वाहिश दिल को चुभ जाती है।
माँ के पूछने पर भी मैं जवाब नहीं दे पता था
क्वारंटाइन वाले दिन भी माँ से बात नहीं कर पता था
बेवजह घर मे सब पर चिल्लाता था
इधर जाओ वो करो, कुछ टूटता देख रह नहीं
पाता था
क्वारंटाइन वाले दिन भी, मैं घर पर अकेला रह
जाता था
कभी काँच के टूटे हुए रिश्ते को याद करता
कभी दफनाए हुए उस दिल से फरियाद करता।
कोरा कागज बनकर रह गया था मैं
जिसे क्वारंटाइन वाले दिन भी कोई नहीं याद
करता।
कंठ सुख जाता है मेरा जब उस ख़ुदा से फरियाद
करता हूँ
खुद से ही रूठता और खुद को ही मनाता फिरता हूँ
जिन गलियों में साथ घूमा करते थे, उन गलियों को
याद करता हूँ
क्वारंटाइन के कारण मंदिर तो नहीं जा सकता,
लेकिन ख़ुदा से फरियाद करता हूँ
शांत सी गलियों को देख कर,
उसका शांत स्वभाव याद आ जाता है
जिसको मैं अपनी जान कहा करता था
उसी का रूठा हुआ, वो प्यार याद आ जाता है।
आखरी मुलाकात अधूरी रह गई थी
मेरी उसे बात अधूरी रह गई थी।
जीवन के इतने कठोर समय में भी, मैं उसे नही
मिल पाया
जब कोरोना लिस्ट में उसका नाम आया।
बिताए हुए पलों को याद कर, उसका खुमार छा जाता है
वो कहती थी परिवार बड़ा होता है
हमारे इस तुच्छ से रिश्ते से, फिर क्यों उसकी याद में
परिवार रोता है ?
जीवन के इस सफर में अधूरी छोड़ कर जाएगी
फिर पुकारने पर भी लौट कर नहीं आएगी
बेबस हो गया हूं इस सफर में, अब मौत के बाद
सुकून कि नींद आएगी।
