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Bhavna Thaker

Abstract

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Bhavna Thaker

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नज़्म

नज़्म

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तसव्वुर में बसी शौख़ हसीना लुभाती है 

सीने में धड़कता वो नगिना छिपाती है


खयालों में आकर दीवाना बनाकर वो

नैंनों से मदिरा सी मीठी हाला पिलाती है 


कुछ दिल दीवाना कुछ उनका खयाल भी

सबसे बचती छुपती वो नज़रें मिलाती है


दिल की वो तलब है सुकून है आँखों का

वो पलटते मुझे देखती जमाल दिखाती है


घटाओं में नहा कर जब धूप में निकले वो

संदल सी महकती सी वो आग लगाती है


उसकी हंसी के जुगनू कम्माल ही कम्माल

पाने को मचल जाऊँ मुझे दूरी जलाती है


भरी सी बज़्म में एक बात कहूँ राज की

वो मल्लिका ए हुश्न मुझसे नैंन लड़ाती है 


जन्नत सी लगे मुझको मेरे यार की गलियाँ 

महेमाँ बनाएँ मुझको पलकों पे बिठाती है


आए वो कभी पास जो धड़क उसे सुनाऊँ 

जपते उसका नाम जो मुझको चिढ़ाती है।


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